Nov 10, 2012

शुभ दीपावली


कतरा कतरा जीवन भर दें
आओ रोशन सब को कर दें
गली का बच्चा, सीधा सच्चा
अरमानों का उसको पर दें
दर्द चबाकर हसते जाए
खुदा ऐसा हमको हुनर दें
रत्ती रत्ती बांट सके सुख
ठंडी छांव से आंठों पहर दें
खुलके अपनी बात कर सके
मीरा को अब ना कोई ज़हर दें
मूह पर सीधी बात करे जो
मालिक ऐसा सबको जिगर दें

ये आग अब बढ़ चुकी है.

फिर से धुआं उठ रहा है
ख़ामोशी सुलगने वाली है
तेरी ओर चल रही हैं हवाएं
ये धीरे धीरे जलती चिंगारियां
बढ़ रही है तेरी ओर
लपटें जलाकर छोड़ेगी
मेरे खतों को तेरी आंच लग चुकी है..
ये आग अब बढ़ चुकी है.
-3/11/12

मेरे दो अनमोल शहर

बड़ा ज़रूरी बड़े काम का शहर है
यारों जोधपुर तो आराम का शहर है
कूलर -हीटर ,सर्दी- गर्मी
हर मोसम के इंतजाम का शहर है
*
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फिर वही भीड़ वही मंज़र होगा
वहां तो इंसानों का समंदर होगा
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लिपस्टिक के दाग जैसा लगता है
मुंबई तेरा रंग कभी उतरेगा नहीं...

Oct 5, 2012

मुम्बईकर

कैसे कर लेते हो भईया
थोड़े से वेतन में महीने भर गुजारा
भीड़ भरी लोकल में चर्चगेट तक की यात्रा
ऑफ़िस की खींचतान के बीच थोड़ा सा मजाक
बरसों पुराने शूट में दोस्तों की शादी अटेंड करना
बेटे की ज़िद को कैसे भी पूरा करना
पटाखों की गूँज में फोन पर बात कर लेना
रात को एक बजे सोना, सुबह छह बजे उठना
तुम कहीं आम मुम्बईकर तो नहीं....!

किश्तों में ही सही

अब ना तो वो पूरा कहते हैं
अब ना ही हम पूरा सुनते हैं
खैर बात तो होती है
चाहे किश्तों में ही सही

वो ज़रा सा देख लेते हैं
हम थोड़ा झांक लेते है
खैरं मुलाक़ात तो होती है
चाहे किश्तों में ही सही
हम तकिया फेंक देते हैं
वो चद्दर खींच लेते हैं
खैर पूरी रात तो होती है
चाहे किश्तों में ही सही

हम छतरी तान देते है
वो थोड़ा भीग जाते हैं
खैर बरसात तो होती है
चाहे किश्तों में ही सही

वो थोड़ा रो भी लेते हैं
हम थोड़ा हंस भी देते हैं
जिंदगी साथ तो होती है
चाहे किश्तों में ही सही..
-दामोदर व्यास
4, अक्टूबर 2012, 2AM

बेटियां

कभी महसूस ही नहीं होता 
बीज का अंकुरण 
पत्तियों का प्रस्फुटन 
तनें का बढ़ना 
शाखों का निकलना
फूलों का खिलना
बेटियां कब बड़ी हो जाती है 
कभी महसूस ही नहीं होता।
-5 अक्तूबर, 3PM 

Oct 3, 2012

अरे ये कहाँ आ गए

अरे ये कहाँ आ गए
ऐसी जगह तो तस्वीरों में देखी है
आँखों को आदत नहीं है
ये हरियाली देखने की
यहाँ तो पी पो भी नहीं है
यहाँ की आदत हमें नहीं है
हमारी सांसें तो
सल्फर डाई ऑक्साइड से चलती है
यहाँ तो एक दिन एक सप्ताह लगता है
चलो वही चले
जहाँ अट्ठन्नी जैसे
दिन खर्च हो जाता है.
यहाँ और रहा तो
ये गाँव शहर का
कोंटेक्ट नंबर मांग लेगा...
-दामोदर व्यास

Jun 9, 2012

प्यार में डिस्टर्बेंस अच्छा नहीं लगता


तुम तो बस शिकायत कर देती हो
कि फोन नहीं करते
तुम्हें क्या पता
उँगलियाँ कितनी बार
डायल पेड तक पहुँच कर रुक जाती है
मैं मोबाइल से दूरियां मिटाना नहीं चाहता
और बरसात के मौसम में
नेटवर्क का भी प्रोब्लम होता है
प्यार में डिस्टर्बेंस
मुझे अच्छा नहीं लगता

 -Damodar vyas
06:50 PM, 09-06-12

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