मुझे औरत सी लगती है घर की ये दीवारें
देखती सुनती सब कुछ है
मगर बोलती कुछ नहीं..
सारी यादों को छुपा लेती है आँचल में
टांग लेती है सीने पर
काँप उठती है खिडकियों की खड़खड़ाहट से
रंग उतरते ही पुरानी लगने लगती है
ठोंक दो कीलें, लगा दो खूँटी इसमें
टांग दो सारी थकान,
ये उफ्फ ना करेगी
मुझे औरत सी लगती है घर ये की दीवारें..
देखती सुनती सब कुछ है
मगर बोलती कुछ नहीं..
सारी यादों को छुपा लेती है आँचल में
टांग लेती है सीने पर
काँप उठती है खिडकियों की खड़खड़ाहट से
रंग उतरते ही पुरानी लगने लगती है
ठोंक दो कीलें, लगा दो खूँटी इसमें
टांग दो सारी थकान,
ये उफ्फ ना करेगी
मुझे औरत सी लगती है घर ये की दीवारें..