रोज़ शाम समंदर की हलक से
उतरता हैं एक सूरज
रोज़ रात तारों की शक्ल में
बिखर कर नज़र आता हैं..ये तारे हाथ पकड़कर
एक चाँद बनाते हैं
ये चाँद बढ़ते-घटते
अमावस की कब्र में दफ्न हो जाता हैं
एक दिन...
ज़िन्दगी भी इसी तरहा
उतर जाएगी वक़्त के हलक से...
और नाम बदलकर फिर पैदा होगी
किसी और क्षितिज पर..
दामोदर व्यास