May 8, 2010

एक सड़क ज़िन्दगी की...


इन्ही सड़कों से निकलती हैं, वो मंजिल वाली गली,
जिसकी तलाश मे हैं... मैं, तुम, हम सब..

यहाँ पर भीड़ भी हैं, ये सड़कें वीरान भी हैं
पुराने खंडर हैं कहीं तो कहीं नए मकान भी हैं
बस आँखे खुली रखना, क्योंकि...
इन्ही सड़कों से निकलती हैं, वो मंज़िल वाली गली

यहाँ दुकानें मिलेंगी तुम्हे, जो तकदीर बेचती हैं
कभी खुशियाँ बेचती हैं, कभी ज़मीर बेचती हैं

बस आँखे खुली रखना, क्योंकि...
इन्ही सड़कों से निकलती हैं, वो मंज़िल वाली गली

कई किरदार नज़र आयेंगे तुम्हें, नकाबपोश-बेनकाब
ठग लिए जाओगे, संभालना जनाब
बस आँखे खुली रखना, क्योंकि...
इन्ही सड़कों से निकलती हैं, वो मंज़िल वाली गली

दामोदर व्यास
८ मई २०१०
मुंबई  




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