Mar 27, 2010

खोता बचपन

 
उठाने दो कूंची,
इसे आसमान में रंग भरने दो
इस ग़ज़ब से बचपन को
कोई उड़ान भरने दो..

काँच की गोलियां ठोकने दो,
इसे पानी पर छप्प-छप्प करने दो,
इस ग़ज़ब से बचपन को
कोई उड़ान भरने दो...

फाड़ने दो किताबो से पन्ने,
एक कल्पना उड़ेगी
या एक कश्ती बनेगी
दीवारों पर कलम चलेगी
तो कोई सूरत भी बनेगी..

ज़िन्दगी की तंग गलियों से,
इन्हें हँसते-हँसते गुजरने दो
इस ग़ज़ब से बचपन को
कोई उड़ान भरने दो....
 
थैलों के बोझ तले,
ये फुलवारियां क्यों दब गयी...
उम्मीदों के हथौड़े पड़ने से,
ये मुस्काने क्यों छिटक गयी
इन नन्हे-नन्हे तारों को,
रात का आँचल भरने दो
इस ग़ज़ब से बचपन को,
कोई उड़ान भरने दो...

इक्तेफाकन उस रोज़


इक्तेफाकन उस रोज़
ठण्ड बढ़ गयी थी..
इक्तेफाकन तुम भी
दुपट्टे में लिपट कर
घर से चली थी...

हुआ यूँ था,
की कुछ रोज़ पहले,
स्कूल में तुम नयी-नयी आई थी...

फरवरी की सर्दी,
ओर दुपट्टे वाली शबनम..
खूब चर्चे हुए थे,
क्लास रूम की मेज़ पे बैठकर...
सब तेरी आँखों का कमाल था..
पता नहीं गुलाबी चेहरे के दीदार में
कितने पन्नो पर तेरी शक्ल बनी होगी,
पता नहीं...!!!

सर्द हवाए तुझे छुकर,
मुझ तक आती,
तेरे केश में लगे... 
आंवले की खुशबू से महक उठता,
मैं भी और क्लास भी...

चलते-चलते,
इक्तेफाकन तेरा दुपट्टा छिटक गया..
गुलाब के पौधे में अटक गया..
 
इक्तेफाकन उस रोज़,
थोड़ी धुप हो रही थी..
इक्तेफाकन शबनम,
मुझे देख रही थी...

इक्तेफाकन फरवरी थी..
इक्तेफाकन तरीक भी 14 थी..

इफ्तेफाकन दुपट्टे में उलझकर,
गुलाब टुटा था उस वक़्त...

इक्तेफाकन मेरी ओर गिर पड़ा था..
इक्तेफाकन मैं सामने खड़ा था..
 
बस इक्तेफाकन प्यार हो गया था.....

आजकल



क्यों आजकल देर से नींद आती हैं...
क्यों अजीब बातों पर वो मुस्कुराती हैं...
आजकल वो दुआए भी करने लगी हैं...
कुछ कह दो तो शर्माती हैं...
पता है, उसे यकीन नहीं होता...
की शायद उसे प्यार हुआ हैं....

कहने को तो घंटो लाइब्ररी में रहती हैं...
मगर किताबें उलटी पकड़ कर, जाने कौनसा सबक याद कराती होगी...
कॉफ़ी का शरबत हो जाता हैं..
फिर भी फूँक मारती रहती हैं..
कोई कितना रोके, कितना टोके...
उलझी रहती हैं...
पता हैं, उसे यकीन नहीं होता...
की शायद उसे प्यार हुआ हैं...

चलते-चलते बच्चो से शरारत करना...
लम्बी आहे भरना... जुल्फों से हरकत करना..
पीछे मुड़ कर, मुस्कुराकर धीरे से बाय कहना..
रोमांटिक नगमों की धुनों पर, सुर से सुर मिलाना...
कोई कितना रोके, कितना टोके...
सुनती ही नहीं हैं..
पता हैं, उसे यकीन नहीं होता हैं..
की शायद उसे प्यार हुआ हैं...

एक मैं हूँ की उसे देखता रहता हूँ..
कुछ लिख कर, कागजों को, पानी में फेंकता रहता हूँ...
आजकल सूरज से दिन नहीं निकलता हैं मेरा..
घंटो नाखुनो को, दांतों से, कुरेदता रहता हूँ...
कोई कितना रोके, कितना टोके..
मुझे कुछ पता नहीं..

पता हैं, उसे यकीन नहीं होता हैं...
की शायद मुझे प्यार हुआ हैं.....

इंसान

 

कांटो पर चलाना काम मेरा,
धरती की गोद में सोता हूँ,
मैं तो दीवाना हूँ यारों,
बस अपनी मौज में रहता हूँ ...

रिश्ते-नातों में उलझा नही,
पूरी दुनिया से मेरा नाता हैं,
सब लगते मुझको अपने से,
मेरा मज़हब यही सिखाता हैं,  
संग रहने से क्या होगा,
मैं सबके दिलो में रहता हूँ
मैं तो दीवाना हूँ यारो,
बस अपनी मौज में रहता हूँ...

कभी उड़ता हूँ बादल बनकर,
कभी बूंदों में ढल जाता हूँ
ग़मों का साया जहाँ भी हों,
वहाँ खुशियाँ बनकर जाता हूँ..
छोटी-छोटी बातों में ,
कभी हँसता हूँ, कभी रोता हूँ..
मैं तो दीवाना हूँ यारो,
बस अपनी  मौज में रहता हूँ..

मुझसे न पूछो नाम मेरा,
सब दिल वाला मुझको कहते हे,
पेड़-पौधे, नदिया-बादल,
सब साथ में मेरे रहते हैं..
धरती को माँ कहने वाला,
अब बेटा मैं इकलौता हूँ..
मैं तो दीवाना हूँ यारो,
बस अपनी मौज में रहता हूँ....

Mar 16, 2010

रिश्ते..


नूर- ऐ- इलाही, राम दुहाई
कैसे भी फरियाद करें
मंदिर उसका, मस्जिद उसकी
जहां चाहे उसको याद करें


बंज़र रिश्तो का क्या होगा
इसी सोच में सदियाँ बीत गयी
पानी उसका, धरती उसकी
वो चाहे जब बरसात करें


लकीरें खेल दिखाती हैं
कभी हाथों में, कभी सरहद पर
मिट्टी उसकी, किस्मत उसकी
वो चाहे जो हालात करें


मुझे उर्दू समझ में आती हैं
तू भी तो हिंदी जनता हैं
ये घर उसका, यह छत उसकी
चलो आओ मिलकर बात करें


एक दिल के दो टुकड़े करके
इसे हिंद कहा, उसे पाक कहा
सीना उसका, धड़कन उसकी
हम सबको जिंदाबाद करें....


दामोदर व्यास
२९। जनवरी। २०१०
मुंबई

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