Mar 27, 2010

खोता बचपन

 
उठाने दो कूंची,
इसे आसमान में रंग भरने दो
इस ग़ज़ब से बचपन को
कोई उड़ान भरने दो..

काँच की गोलियां ठोकने दो,
इसे पानी पर छप्प-छप्प करने दो,
इस ग़ज़ब से बचपन को
कोई उड़ान भरने दो...

फाड़ने दो किताबो से पन्ने,
एक कल्पना उड़ेगी
या एक कश्ती बनेगी
दीवारों पर कलम चलेगी
तो कोई सूरत भी बनेगी..

ज़िन्दगी की तंग गलियों से,
इन्हें हँसते-हँसते गुजरने दो
इस ग़ज़ब से बचपन को
कोई उड़ान भरने दो....
 
थैलों के बोझ तले,
ये फुलवारियां क्यों दब गयी...
उम्मीदों के हथौड़े पड़ने से,
ये मुस्काने क्यों छिटक गयी
इन नन्हे-नन्हे तारों को,
रात का आँचल भरने दो
इस ग़ज़ब से बचपन को,
कोई उड़ान भरने दो...

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