Nov 6, 2008

अखबार



सोमवार से रविवार तक,  कैसी खबरें लाता है...
ये अखबार, जो रोज़, मेरे घर पर आता है..

जलती रेलें, खोते जहाज़ और भी कुछ...
बनते रिश्ते, रश्म-ओ-रिवाज़ और भी कुछ..
उटपटांग सी खबरों को,  हेडलाइंस बनाता है...
ये अखबार, जो रोज़, मेरे घर पर आता है..

कहीं आंसू से भीगा, कहीं खून से लाल हाय राम..
कहीं शोक संदेश, कहीं माया का जाल हाय राम...
चाय की चुस्की लेते-लेते, मेरा जी घबराता है..
ये अखबार, जो रोज़, मेरे घर पर आता है...

ओलम्पिक में बस एक मेडल, चलो ठीक है...
इंडिया-ऑस्ट्रेलिया, ड्रा पे सेटल, चलो ठीक है...
पर होकी, कबड्डी, खो-खो को, क्यों सुर्खिया नहीं बनाता है...
ये अखबार, जो रोज़, मेरे घर पर आता है...

किंग खान और करन जोहर, फ्रांस में शूट पर बिजी है...
शाहिद ने नयी फिल्म साइन की, करीना थोड़ी चूजी है...
एक अरब के देश को, क्या फालतू बातें सुनाता है...
ये अखबार, जो रोज़, मेरे घर पर आता है....

आज हाथ से, कल फूल पर, घर बदले...
नरम मुलायम, उछले लालू, नटवर बदले...
माया, उमा और जाया जैसी, देवी के रूप दिखाता है...
ये अखबार, जो रोज़,  मेरे घर पर आता है...

* This poems is a direct comment on today's electronic and some print media

Nov 5, 2008

पहला प्यार..

हर बार कोई जब मिलता है,
तेरी बात छेड़ता हैं मुझसे..
हर बार यही सोचता हूँ मैं, की...
चलो भूल कर देखे..

घर से निकलना मुश्किल हैं..
गलियों से गुज़ारना मुश्किल हैं,
वो खिड़की अब भी वहीँ है क्या?
ओह..!!  चलो भूल कर देखे...

कॉलेज के गेट पर जब भी कोई..
छुप-छुप के सीटी बजाता हैं..
वो मेरी याद दिलाता हैं..
उफ़...!! चलो भूल कर देखे...

कोई पलट-पलट के देखता है..
उंगली में लटे लपेटता हैं..
जी छूने को ललचाता है..
ना..!!  चलो भूल कर देखे..

इस रात को कैसे भूलूं मैं..
उस बात को कैसे भूलूं मैं..
जब चाँद को खूब जलाया था..
छोडो..!!  चलो भूल कर देखे..

ये दिल, आँखे, सांसे सब कुछ..
तेरे नाम से हरकत करती थी..
अब नाम-ओ-निशाँ नहीं है तेरा..
आह..!!  चलो भूल कर देखे.....

बेबसी..

हालत मेरी बिगड़ दे मौला,
बगिया मेरी उजाड़ दे मौला,
जो भी दे किश्तों में मत दे,
ग़मों का छप्पर फाड़ दे मौला....

खुद तो माखन मिश्री खाता,
कितने सारे रूप बनाता,
कभी रोटी बन, थाली में आजा,
या मेरा चूल्हा उखाड़ दे मौला..

सूखे बर्तन, गीले बिस्तर,
अब आकर जल्दी ही कुछ कर,
या तो सुख की गगरी भर दे,
या दुःख की कोई "तिहाड़" दे मौला..

बच्चे मेरे खेलने जाए,
मिट्टी के भगवान बनाये,
उनके सपनो में रंग भर दे,
या फिर उन्हें, लताड़ दे मौला..

कैसे अब मैं मूंह ना खोलूं,
क्यों तेरे आगे-पीछे डोलू,
या तो अब तू ही कुछ कह दे,
या मेरे मूंह पे  *किवाड़ दे मौला..

*किवाड़= दरवाजा (This is marwadi word)

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