Sep 26, 2010

जीवन चक्र

रोज़ शाम समंदर की हलक से
उतरता हैं एक सूरज

रोज़ रात तारों की शक्ल में
बिखर कर नज़र आता हैं..
ये तारे हाथ पकड़कर
एक चाँद बनाते हैं
ये चाँद बढ़ते-घटते
अमावस की कब्र में दफ्न हो जाता हैं
एक दिन...

ज़िन्दगी भी इसी तरहा
उतर जाएगी वक़्त के हलक से...

और नाम बदलकर फिर पैदा होगी
किसी और क्षितिज पर..


दामोदर व्यास 

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