Apr 10, 2015

जनतंत्र का हास

कहीं वाक्य का विन्यास है
कहीं झूठ का उल्लास है
कहा तुमने छाती ठोक के
कहाँ हो रहा वो विकास है

आडम्बरों की उपासना
जो भी मिले, सब फाँसना
धर्मों में अंतर बढ़ रहा
और मिट रहे इतिहास है

बड़ा स्नेह लेकर आये थे
बड़े सपने तुमने दिखाए थे
पर मंत्रियों के बोल से
हुआ देश का उपहास है

आचार बेचती बेटियां
सेठों की भरती पेटियां
वादों को झुमले बता दिया
तोड़ा यहाँ विश्वास है

कहीं थालियों में भूख है
कहीं हाथ में बंदूक है
यहाँ जेब कटती रोज़ है
क्या इसका भी आभास है

जन-धन का सच कुछ और है
कम काम है, बस शोर है
कचरे में बिखरी योजना
वाह! ख़ूब ये भी प्रयास है

है घर तुम्हारा विदेश में
टिकते नहीं तुम देश में
भाषण में कोरी चुटकियाँ
अभिव्यक्ति का अट्टहास है

जनतंत्र का आदर करो
जो वादे थे, पूरे करो
जनता ने तोड़ा तख़्त को
जब भी हुआ कोई हास है

-10 अप्रैल, 2015
दामोदर व्यास

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