मुझमें फूट रही थी एक कविता
स्टेशन से आते-जाते वक़्त
अनजाने में
जाने कैसे बीज गड़ गया था
बूट पोलिश के जरिये
दो वक़्त की रोटी जुटाने वाले
उस बच्चे को
कल रात
प्लेटफार्म पर रोता देखकर
दिल कांपने लगा
उसके आंसू
उतर गए थे भीतर तक
सुबह होने तक
कविता फूट कर निकल चुकी थी
सिर उठाकर
पौधा, आकाश से पूछ रहा था-
बरसात में लोग
चमड़े के जूते क्यों नहीं पहनते हैं।
#damukipoem
©Damodar
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