वो खामोश खड़ा है
पुराने बरगद की तरह
शहर की हाई राइज इमारतों के बीच
उस बरगद की छाँव में
हजारों लोगों ने दिनभर
अपनी थकान मिटाई है
टूटती टहनियाँ, सूखते पत्ते
तमाम परेशानियों के बावजूद
उसने कितनों को लू से बचाया
कितनों को गोद में सुलाया
उस बूढ़े पेड़ को देखकर
सरकारी अस्पताल याद आता है
कितने ही ज़रुरतमंदों को पनाह दी जिसने
शाम को अपनी ही मंद रोशनी में
जो थककर सो गया
ज़रूरतों के लिए बना था
ज़रुरतमंदों का हो गया
-16/7/2014
From: J J
#damukipoem
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