अब बंद कमरों में यादें जवां नहीं होती
एक वक़्त था
जब हुनरमंद हाथों से
रिश्ते गुजरते थे
लाल रोशनी में
घंटों लटकी रहती थी मुस्कानें
अब सब कुछ तो सेल्फी हो गया है
इंतजार नहीं करना पड़ता अब किसी का
यादों को क्लिक कर, जेब में डाल दिया जाता है
अब न कोई एल्बम बनता है
और न ही घर की मेज़ पर यादें रखी जाती है
न जाने कितनी बातें
बेवजह अपलोड-डाउनलोड होती रहती है
यादों की उम्र छोटी हो गयी है यार
छोटी सी बात पर
सब कुछ डिलीट हो जाता है
न फाड़ने झंझट
और न ही जलाने वाला अहसास
अब बंद कमरों में यादें जवां नहीं होती
अगले क्लिक तक रिश्तों की उम्र होती है
-15/7/2014
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