फलक पर ये कौनसा चेहरा बन रहा है
रात के सन्नाटे में
ये ख़ामोशी क्या कह रही है..
ये चाँद क्यों आँख मिचौली कर रहा है..
ये हवाएं क्यों उड़ा रही है ,
मेज पर रखी किताब के पन्ने..
ये नदी बहकर किस और जा रही है
इतनी रात को..
लगता है ,
रात भर कायनात कोई साजिश कर रही है..
दहलीज पर सुबह की दस्तक होते ही,
सभी अपने घरों में चले जाते हैं..
ये रात सुबह को कहाँ चली जाती है
ये रात रात में ही क्यों आती हैं...
( 14th November, 2011 : 2.47AM )
रात के सन्नाटे में
ये ख़ामोशी क्या कह रही है..
ये चाँद क्यों आँख मिचौली कर रहा है..
ये हवाएं क्यों उड़ा रही है ,
मेज पर रखी किताब के पन्ने..
ये नदी बहकर किस और जा रही है
इतनी रात को..
लगता है ,
रात भर कायनात कोई साजिश कर रही है..
दहलीज पर सुबह की दस्तक होते ही,
सभी अपने घरों में चले जाते हैं..
ये रात सुबह को कहाँ चली जाती है
ये रात रात में ही क्यों आती हैं...
( 14th November, 2011 : 2.47AM )
1 comment:
bahut khoob
umdaa
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