हालत मेरी बिगड़ दे मौला,
बगिया मेरी उजाड़ दे मौला,
जो भी दे किश्तों में मत दे,
ग़मों का छप्पर फाड़ दे मौला....
खुद तो माखन मिश्री खाता,
कितने सारे रूप बनाता,
कभी रोटी बन, थाली में आजा,
या मेरा चूल्हा उखाड़ दे मौला..
सूखे बर्तन, गीले बिस्तर,
अब आकर जल्दी ही कुछ कर,
या तो सुख की गगरी भर दे,
या दुःख की कोई "तिहाड़" दे मौला..
बच्चे मेरे खेलने जाए,
मिट्टी के भगवान बनाये,
उनके सपनो में रंग भर दे,
या फिर उन्हें, लताड़ दे मौला..
कैसे अब मैं मूंह ना खोलूं,
क्यों तेरे आगे-पीछे डोलू,
या तो अब तू ही कुछ कह दे,
या मेरे मूंह पे *किवाड़ दे मौला..
*किवाड़= दरवाजा (This is marwadi word)
1 comment:
Awesome.... Simply superb....
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