इक पूरा चाँद, पूनम कि रात निकला ...
सोचा कि खूब खिलेगा आज खुद कि सूरत पर...
सोचा कि खूब खिलेगा आज खुद कि सूरत पर...
मगर पागल था ...
ठंडी आग वाला चाँद ...
चेहरे पे दाग वाला चाँद
उसी रात को ही तो मिली थी, तुम भी मुझसे ....
बरसों पुराने इंतज़ार के साथ ....
शर्म से बोझल आंखो को,
कुछ कहने कि चाहत थी,
कम्पकपाते होंठो को देखकर....
भला कोई कैसे... कुछ न भूलता....
आवारा चाँद भी रात
खुद को भूल बैठा....
तूम जो आयी थी बरसों बाद ....
उस रात... छत पर....
रोज़ मत आना वरना....
पागल चाँद
खुद को बरबाद ना कर बैठे कहीं ....
3 comments:
kya baat hai
sunder koshish hai par kuch adhuri lag rahi hai...thoda aur chand,aur mulaqat ko bayan karna chahiye tha
prashansniya prayas
kuchh kahaniyaan kabhi mukammal nahi ho paati hein....
बहुत सुंदर नज्म है ...
Post a Comment