Dec 29, 2007

बेचारा चाँद


इक पूरा चाँद, पूनम कि रात निकला ...
सोचा कि खूब खिलेगा आज खुद कि सूरत पर...

मगर पागल था ...
ठंडी आग वाला चाँद ...
चेहरे पे दाग वाला चाँद

उसी रात को ही तो मिली थी, तुम भी मुझसे ....
बरसों पुराने इंतज़ार के साथ ....

शर्म से बोझल आंखो को, 
कुछ कहने कि चाहत थी, 
कम्पकपाते होंठो को देखकर....
भला कोई कैसे... कुछ न भूलता....

आवारा चाँद भी रात
 खुद को भूल बैठा....
तूम जो आयी थी बरसों बाद ....
उस रात... छत पर....

रोज़ मत आना वरना....
पागल चाँद
खुद को बरबाद ना कर बैठे कहीं ....

3 comments:

Unknown said...

kya baat hai

sunder koshish hai par kuch adhuri lag rahi hai...thoda aur chand,aur mulaqat ko bayan karna chahiye tha

prashansniya prayas

Railway News Express said...

kuchh kahaniyaan kabhi mukammal nahi ho paati hein....

दर्शन कौर धनोय said...

बहुत सुंदर नज्म है ...

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